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दामोदर मेमन


             *दामोदर मेमन*
   (स्वतन्त्रता सेनानी तथा पत्रकार)

       *जन्म : 10 जून, 1906*
                (करमलूर, केरल)
      *मृत्यु : 1 नवम्बर, 1980*
नागरिकता : भारतीय
प्रसिद्धि : स्वतन्त्रता सेनानी तथा पत्रकार
आंदोलन : नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन
जेल यात्रा : 1942 से 1945 तक
विद्यालय : महाराजा कॉलेज, त्रिवेंद्रम; रंगून विश्वविद्यालय
शिक्षा : वकालत
अन्य जानकारी : दामोदर मेनन ने विभिन्न समयों में ‘समदर्शी’, ‘स्वतंत्र’, ‘कहालम’ और ‘पावर शक्ति’ पत्रों का भी संपादन किया। उनकी गणना केरल के प्रथम कोटि के पत्रकारों में होती थी।
                    दामोदर मेनन भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानियों में से एक थे। तत्कालीन समय में उनकी गिनती देश के बेहतरीन पत्रकारों में की जाती थी। उन्होंने महात्मा गाँधी के 'नमक सत्याग्रह' और 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' में सक्रिय रूप से भाग लिया। समाजवादी विचारों के होते हुए भी दामोदर मेनन गाँधी जी के अहिंसा के सिद्धांत में विश्वास करते थे।

💁🏻‍♂️ *परिचय*
                दामोदर मेनन का जन्म 10 जून, 1906 ई. को केरल के 'करमलूर' नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने क़ानून की डिग्री प्राप्त की थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा महात्मा गाँधी का उनके जीवन पर व्यापक प्रभाव था। 1957 में उन्हें केरल विधान सभा का सदस्य चुना गया था। दामोदर मेनन की गिनती उच्च कोटि के पत्रकारों में भी की जाती है। इनके आर्थिक विचार बड़े ही उदार हुआ करते थे।                                                          💥 *शिक्षा तथा राष्ट्र-प्रेम*
                          दामोदर मेनन ने 'महाराजा कॉलेज', त्रिवेंद्रम और 'रंगून यूनिवर्सिटी', बर्मा (वर्तमान म्यांमार) से शिक्षा पाई थी। इसके बाद इन्होंने त्रिवेंद्रम से क़ानून की डिग्री ली। किन्तु उनकी रुचि सार्वजनिक कार्यों और पत्रकारिता में अधिक थी। वे गाँधी जी और जवाहरलाल नेहरू जी से प्रेरित होकर वे स्वतंत्रता-संग्राम में सम्मिलित हो गए। 1930 ई. के नमक सत्याग्रह और 1932 ई. के सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल में भी रहे। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भी वे 1942 से 1945 तक बंद रहे। 1948 तक प्रसिद्ध मलयालम दैनिक ‘मातृभूमि’ के संपादक के रूप में उन्होंने जन-जागरण के लिए महत्त्वपूर्ण काम किया।

⚜️ *राजनीति में*
                 दामोदर मेनन अस्थायी लोक सभा के लिए भी चुने गए थे, पर कांग्रेस से नीतिगत मतभेद हो जाने के कारण 1952 से 1957 तक वे 'किसान मज़दूर प्रजा पार्टी' के सांसद रहे। 1957 के निर्वाचन में पुनः कांग्रेस के टिकट पर केरल विधान सभा के सदस्य चुने गए और राज्य सरकार में मंत्री बने। 1964 में जब मंत्रिमंडल भंग हो गया, तो वे पुनः ‘मातृभूमि’ पत्र में आ गए। इन्होंने विभिन्न समयों में ‘समदर्शी’, ‘स्वतंत्र’, ‘कहालम’ और ‘पावर शक्ति’ पत्रों का भी संपादन किया। उनकी गणना केरल के प्रथम कोटि के पत्रकारों में होती थी।  
            

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