विशेष प्रश्नमंजुषा टेस्ट सोडवा सर्टिफिकेट मिळवा

समाजकारण /राजकारण

मी विजय भुजबळ ग्रेट इंडियन या ब्लॉगवर सहर्ष स्वागत करत आहे या ब्लॉग वरती आपणास भारत देशातील महान व्यक्तींची माहिती उपलब्ध होणार आहे. देशासाठी लढणारे क्रांतिकारक जवान, सैनिक, खेळाडू, समाजसेवक, शिक्षण तज्ञ, वैज्ञानिक , लेखक, राजकारण, अशा क्षेत्रांमध्ये महत्त्वपूर्ण महान व्यक्तींची ओळख कार्य , याची माहिती उपलब्ध होणार आहे.WELCOME TO MY BLOG GREAT INDIAN THANKS FOR VISIT MY BLOG AND FOLLOW MY BLOG
FOLLOW MY BLOG


 

Translate /ब्लॉग वाचा जगातील कोणत्याही भाषेत

Breaking

बाबू जगजीवन राम


                                                                                                                                                                          

        *बाबू जगजीवन राम*


                                                                                *जन्म : 5 अप्रैल, 1908*

(भोजपुर का 'चंदवा गाँव', बिहार)

*मृत्यु : 6 जुलाई, 1986*

                                                                      अन्य :  नाम बाबूजी                                          पिता : शोभा राम 

संतान : पुत्री- मीरा कुमार

नागरिकता : भारतीय

प्रसिद्धि : दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है।

पार्टी : कांग्रेस और जनता दल

पद : श्रम मंत्री, रेल मंत्री, कृषि मंत्री, रक्षा मंत्री और उप-प्रधानमंत्री आदि पदों पर रहे।

शिक्षा : स्नातक

विद्यालय : कलकत्ता विश्वविद्यालय

भाषा : हिन्दी, अंग्रेज़ी

जेल यात्रा : भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल यात्रा की।

अन्य जानकारी : बाबूजी सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 1952 से 1984 ई. तक लगातार सांसद चुने गए।                                                                                                                 जगजीवन राम  आधुनिक भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष जिन्हें आदर से 'बाबूजी' के नाम से संबोधित किया जाता था। लगभग 50 वर्षो के संसदीय जीवन में राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा बेमिसाल है। उनका संपूर्ण जीवन राजनीतिक, सामाजिक सक्रियता और विशिष्ट उपलब्धियों से भरा हुआ है। सदियों से शोषण और उत्पीड़ित दलितों, मज़दूरों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए जगजीवन राम द्वारा किए गए क़ानूनी प्रावधान ऐतिहासिक हैं। जगजीवन राम का ऐसा व्यक्तित्व था जिसने कभी भी अन्याय से समझौता नहीं किया और दलितों के सम्मान के लिए हमेशा संघर्षरत रहे। विद्यार्थी जीवन से ही उन्होंने अन्याय के प्रति आवाज़ उठायी। बाबू जगजीवन राम का भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में महती योगदान है।

🙍🏻‍♂️ *जन्म*

एक दलित के घर में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर छा जाने वाले बाबू जगजीवन राम का जन्म बिहार की उस धरती पर हुआ था जिसकी भारतीय इतिहास और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था। उनका नाम जगजीवन राम रखे जाने के पीछे प्रख्यात संत रविदास के एक दोहे - प्रभु जी संगति शरण तिहारी, जगजीवन राम मुरारी, की प्रेरणा थी। इसी दोहे से प्रेरणा लेकर उनके माता-पिता ने अपने पुत्र का नाम जगजीवन राम रखा था। उनके पिता शोभा राम एक किसान थे, जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थी।       

📖 *शिक्षा*

इन्होंने स्नातक की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1931 में ली।

🇮🇳 *स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग*

जगजीवन राम उस समय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले दल में शामिल हुए, जब अंग्रेज़ अपनी पूरी ताक़त के साथ आज़ादी के सपने को हमेशा के लिए कुचल देना चाहते थे। पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अंग्रेजों ने अपनी सारी ताक़त झोंक दी थी। मुस्लिम लीग की कमान जिन्ना के हाथ में थी और वे अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली बने थे।

         गाँधी जी ने साम्राज्यवादी अंग्रेजों के इरादे को भांप लिया था कि स्वतंत्रता आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए अंग्रेज़ों की फूट डालो, राज करो नीति को बाबूजी ने समझा। हिन्दू मुस्लिम विभाजन कर अंग्रेज़ों ने दलितों और सवर्णों के मध्य खाई बनाने प्रारम्भ की, जिसमें वह सफल भी हुए और दलितों के लिए 'निर्वाचन मंडल', 'मतांतरण' और 'अछूतिस्तान' की बातें होने लगीं। महात्मा गांधी ने इसके दूरगामी परिणामों को समझा और आमरण अनशन पर बैठ गए। यह राष्ट्रीय संकट का समय था। इस समय राष्ट्रवादी बाबूजी ज्योति स्तंभ बनकर उभरे। उन्होंने दलितों के सामूहिक धर्म-परिवर्तन को रोका और उन्हें स्वतंत्रता की मुख्यधारा से जोड़ने में राजनीतिक कौशल और दूरदर्शिता का परिचय दिया। इस घटना के बाद बाबूजी दलितों के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। वह बापू के विश्वसनीय और प्रिय पात्र बने और राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गए।

💂‍♂️ *अंग्रेज़ों का विरोध*

1936 में 28 साल की उम्र में ही उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य चुना गया था। 'गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट' 1935 के अंतर्गत 1937 में अंग्रेज़ों ने बिहार में कांग्रेस को हराने के लिए यूनुस के नेतृत्व में कठपुतली सरकार बनवाने का निष्फल प्रयत्न किया। इस चुनाव में बाबूजी निर्विरोध निर्वाचित हुए और उनके 'भारतीय दलित वर्ग संघ' के 14 सदस्य भी जीते। उनके समर्थन के बिना वहां कोई सरकार नहीं बन सकती थी। यूनुस ने बाबूजी को मनचाहा मंत्री पद और अन्य प्रलोभन दिये, किंतु बाबूजी ने उस प्रस्ताव को तुरंत ठुकरा दिया। यह देखकर गांधी जी ने 'पत्रिका हरिजन' में इस पर टिप्पणी करते हुए इसे देशवासियों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बताया। उसके बाद बिहार में कांग्रेस की सरकार में वह मंत्री बनें किन्तु कुछ समय में ही अंग्रेज़ सरकार की लापरवाही के कारण महात्मा जी के कहने पर कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे रहे। मुंबई में 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया तो जगजीवन राम सबसे आगे थे। योजना के अनुसार उन्हें बिहार में आन्दोलन तेज करना था लेकिन दस दिन बाद ही गिरफ्तार कर लिए गये।                                           💠 *राजनीति में सफलता*

बाबूजी के प्रयत्नों से गांव - गांव तक डाक और तारघरों की व्यवस्था का भी विस्तार हुआ। रेलमंत्री के रूप में बाबूजी ने देश को आत्म-निर्भर बनाने के लिए वाराणसी में डीजल इंजन कारख़ाना, पैरम्बूर में 'सवारी डिब्बा कारख़ाना' और बिहार के जमालपुर में 'माल डिब्बा कारख़ाना' की स्थापना की।

सन 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल होने के बाद वह सत्ता की उच्च सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए और तीस साल तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे। पांच दशक से अधिक समय तक सक्रिय राजनीति में रहे बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक कार्यकर्ता, सांसद और कैबिनेट मंत्री के रूप में देश की सेवा की। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि श्रम, कृषि, संचार, रेलवे या रक्षा, जो भी मंत्रालय उन्हें दिया गया उन्होंने उसका प्रशासनिक दक्षता से संचालन किया और उसमें सदैव सफ़ल रहे। किसी भी मंत्रालय में समस्या का समाधान बड़ी कुशलता से किया करते थे। उन्होंने किसी भी मंत्रालय से कभी इस्तीफ़ा नहीं दिया और सभी मंत्रालयों का कार्यकाल पूरा किया।        

♨️ *श्रम मंत्री*

1946 तक वह गांधी जी के हृदय में उतर गए थे। अब तक अंग्रेज़ों ने भी बाबूजी को भारतीय दलित समाज के सर्वमान्य नेता के रूप में स्वीकार कर लिया। आज़ादी के बाद जो पहली सरकार बनी उसमें उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। यह उनका प्रिय विषय था। वह बिहार के एक छोटे से गांव की माटी की उपज थे, जहां उन्होंने खेतिहर मज़दूरों का त्रासदी से भरा जीवन देखा था। विद्यार्थी के रूप में कोलकाता में मिल - मज़दूरों की दारुण स्थिति से भी उनका साक्षात्कार हुआ था। बाजूजी ने श्रम मंत्री के रूप में मज़दूरों की जीवन स्थितियों में आवश्यक सुधार लाने और उनकी सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के लिए विशिष्ट क़ानूनी प्रावधान किए, जो आज भी हमारे देश की श्रम - नीति का मूलाधार हैं।                              🔹 *मज़दूरों के हितैषी*

बाबूजी सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 1952 से 1984 तक लगातार सांसद चुने गए।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने भारत छोड़ा तो उनका प्रयास था कि पाकिस्तान की भांति भारत के कई टुकड़े कर दिए जाएं। शिमला में कैबिनेट मिशन के सामने बाबूजी ने दलितों और अन्य भारतीयों के मध्य फूट डालने की अंग्रेज़ों की कोशिश को नाकाम कर दिया। अंतरिम सरकार में जब बारह लोगों को लार्ड वावेल की कैबिनेट में शामिल होने के लिए बुलाया गया तो उसमें बाबू जगजीवन राम भी थे। उन्हें श्रम विभाग दिया गया। इस समय उन्होंने ऐसे क़ानून बनाए जो भारत के इतिहास में आम आदमी, मज़दूरों और दबे कुचले वर्गों के हित की दिशा में मील के पत्थर माने जाते हैं। उन्होंने 'मिनिमम वेजेज एक्ट', 'इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट' और 'ट्रेड यूनियन एक्ट' बनाया जिसे आज भी मज़दूरों के हित में सबसे बड़े हथियार के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 'एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट' और 'प्रोवीडेंट फंड एक्ट' भी बनवाया।

🏛️ *संसद में*

भारत की संसद को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे। 1952 में उन्हें नेहरू जी ने 'संचार मंत्री' बनाया। उस समय संचार मंत्रालय में ही विमानन विभाग भी था। उन्होंने निजी विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांवों में डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में नेहरू जी ने उन्हें रेल मंत्री बनाया। उस समय उन्होंने रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद डाली और रेलवे कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की। उन्हीं के प्रयास से आज रेलवे देश का सबसे बड़ा विभाग है। वे सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 1952 से 1984 तक लगातार सांसद चुने गए।                                    🌀 *संगठन*

उन्हें पद की लालसा बिल्कुल न थी। जब कामराज योजना आई तो उन्होंने संगठन का काम प्रारम्भ किया। शास्त्री जी की मृत्यु के बाद जब इंदिरा जी ने प्रधानमंत्री पद संभाला तो इंदिरा जी ने बाबू जी को अति कुशल प्रशासक के रूप में अपने साथ लिया। वह भारत के लिए बहुत कठिन दिन थे।

🌴 *हरित क्रांति*

1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से लड़ाई के कारण ग़रीब और किसान भुखमरी से लड़ रहे थे। अमेरिका से पी.एल- 480 के अंतर्गत सहायता में मिलने वाला गेहूं और ज्वार मुख्य साधन था। ऐसी विषम परिस्थिति में डॉ नॉरमन बोरलाग ने भारत आकर 'हरित क्रांति' का सूत्रपात किया। हरित क्रांति के अंतर्गत किसानों को अच्छे औजार, सिंचाई के लिए पानी और उन्नत बीज की व्यवस्था करनी थी। आधुनिक तकनीकी के पक्षधर बाबू जगजीवन राम कृषि मंत्री थे और उन्होंने डॉ नॉरमन बोरलाग की योजना को देश में लागू करने में पूरा राजनीतिक समर्थन दिया। दो ढाई साल में ही हालात बदल गये और अमेरिका से अनाज का आयात रोक दिया गया। भारत 'फूड सरप्लस' देश बन गया था।                                     👮‍♂️ *रक्षा मंत्री के रूप में*

छुआछूत विरोधी एक सम्मेलन में जगजीवन राम ने कहा- सवर्ण हिन्दुओं की इन नसीहतों से कि मांस भक्षण छोड़ दो, मदिरा मत पियो, सफाई के साथ रहो, अब काम नहीं चलेगा। अब दलित उपदेश नहीं, अच्छे व्यवहार की मांग करते हैं और उनकी मांग स्वीकार करनी होगी। शब्दों की नहीं ठोस काम की आवश्यकता है। मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को अपना अलग देश बनाने के लिए उकसा दिया है। डॉ आम्बेडकर ने अछूतों के लिए पृथक् निर्वाचन मंडल की माग की है। राष्ट्र की रचना हमसे हुई है, राष्ट्र से हमारी नही। राष्ट्र हमारा है। इसे एकताबद्ध करने का प्रयास भारत के लोगों को ही करना है। महात्मा गाँधी ने निर्णय लिया है कि छुआछूत को समाप्त करना होगा। इसके लिए मुझे अपनी कुर्बानी भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। देश की आज़ादी की लड़ाई में सभी धर्म और जाति के लोगों को बड़ी संख्या में जोड़ना होगा।

1962 और 1965 की लड़ाई के बाद भूख की समस्या को उन्होंने बहुत बहादुरी और सूझबूझ से परास्त किया। 1971 में बांग्लादेश की स्थापना के पहले भारत और पाकिस्तान की लड़ाई में बाबू जी ने जिस तरह अपनी सेनाओं को राजनीतिक सहयोग दिया वह सैन्य इतिहास में एक उदाहरण है। जब कांग्रेस के तमाम पुराने नेताओं ने इंदिरा गांधी का साथ छोड़ दिया था, बाबू जगजीवन राम हमेशा उनके साथ रहे, किंतु उन्होंने कभी भी मूल्यों से समझौता नहीं किया।

✈️ *संचार और परिवहन मंत्री के रूप में*

इसी प्रकार संचार और परिवहन मंत्री के रूप में उन्होंने विरोध के बाद भी निजी हवाई सेवाओं के राष्ट्रीयकरण की दिशा में सफल प्रयोग किया। फलस्वरूप 'वायु सेवा निगम' बना और 'इंडियन एयर लाइंस' व 'एयर इंडिया' की स्थापना हुई। इस राष्ट्रीयकरण का प्रबल विरोध हुआ, जिसे देखते हुए सरदार पटेल भी इसे कुछ समय के लिए स्थगित करने के पक्ष में थे। बाबूजी ने उनसे कहा था - 'आज़ादी के बाद देश के पुनर्निर्माण के सिवा और काम ही क्या बचा है?' इसी समय बाबूजी के प्रयत्नों से गांव - गांव तक डाक और तारघरों की व्यवस्था का भी विस्तार हुआ। रेलमंत्री के रूप में बाबूजी ने देश को आत्म-निर्भर बनाने के लिए वाराणसी में डीजल इंजन कारख़ाना, पैरम्बूर में 'सवारी डिब्बा कारख़ाना' और बिहार के जमालपुर में 'माल डिब्बा कारख़ाना' की स्थापना की।


बाबूजी ने सरदार पटेल से कहा था - 'आज़ादी के बाद देश के पुनर्निर्माण के सिवा और काम ही क्या बचा है?'

पटना में आयोजित छुआछूत विरोधी सम्मेलन में उन्होंने कहा - सवर्ण हिन्दुओं की इन नसीहतों से कि मांस भक्षण छोड़ दो, मदिरा मत पियो, सफाई के साथ रहो, अब काम नहीं चलेगा। अब दलित उपदेश नहीं, अच्छे व्यवहार की मांग करते हैं और उनकी मांग स्वीकार करनी होगी। शब्दों की नहीं ठोस काम की आवश्यकता है। मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को अपना अलग देश बनाने के लिए उकसा दिया है। डॉ आम्बेडकर ने अछूतों के लिए पृथक् निर्वाचन मंडल की माग की है। राष्ट्र की रचना हमसे हुई है, राष्ट्र से हमारी नही। राष्ट्र हमारा है। इसे एकताबद्ध करने का प्रयास भारत के लोगों को ही करना है। महात्मा गाँधी ने निर्णय लिया है कि छुआछूत को समाप्त करना होगा। इसके लिए मुझे अपनी कुर्बानी भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। देश की आज़ादी की लड़ाई में सभी धर्म और जाति के लोगों को बड़ी संख्या में जोड़ना होगा।                       🔸 *जनता दल में*

आज़ादी के बाद जब पहली सरकार बनी तो वे उसमें कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुए और जब तानाशाही का विरोध करने का अवसर आया तो लोकशाही की स्थापना की लड़ाई में शामिल हो गए। 1969 में कांग्रेस के विभाजन के समय इन्होंने श्रीमती इन्दिरा गांधी का साथ दिया तथा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए । 1970 में इन्होनें कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता दल में शामिल हो गये थे। सब जानते हैं कि 6 फरवरी 1977 के दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से दिया गया उनका इस्तीफ़ा ही वह ताक़त थी जिसने इमरजेंसी को ख़त्म किया।


🔮 *जीवनी के मुख्य बिन्दु*

जगजीवन राम ने 1928 में कोलकाता के वेलिंगटन स्क्वेयर में एक विशाल मज़दूर रैली का आयोजन किया था जिसमें लगभग 50 हज़ार लोग शामिल हुए।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस तभी भांप गए थे कि जगजीवन राम में एक बड़ा नेता बनने के तमाम गुण मौजूद हैं।

महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में भी जगजीवन राम ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह उन बड़े नेताओं में शामिल थे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत को झोंकने के अंग्रेज़ों के फैसले की निन्दा की थी। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

वर्ष 1946 में वह जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। भारत के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें श्रम मंत्री का दर्जा मिला और 1946 से 1952 तक इस पद पर रहे।

जगजीवन राम 1952 से 1986 तक संसद सदस्य रहे। 1956 से 1962 तक उन्होंने रेल मंत्री का पद संभाला। 1967 से 1970 और फिर 1974 से 1977 तक वह कृषि मंत्री रहे।

इतना ही नहीं 1970 से 1971 तक जगजीवन राम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 1970 से 1974 तक उन्होंने देश के रक्षामंत्री के रूप में काम किया।

23 मार्च, 1977 से 22 अगस्त, 1979 तक वह भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे।

आपातकाल के दौरान वर्ष 1977 में वह कांग्रेस से अलग हो गए और 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' नाम की पार्टी का गठन किया और जनता गठबंधन में शामिल हो गए। इसके बाद 1980 में उन्होंने कांग्रेस (जे) का गठन किया।                                 🪔 *निधन*

6 जुलाई, 1986 को 78 साल की उम्र में इस महान् राजनीतिज्ञ का निधन हो गया। बाबू जगजीवन राम को भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है। वह स्वतंत्र भारत के उन गिने चुने नेताओं में थे जिन्होंने देश की राजनीति के साथ ही दलित समाज को भी नयी दिशा प्रदान की।

                                            

          🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳   

   🙏 *विनम्र अभिवादन*🙏


          

हंसा मेहता


    

           *पद्मभूषण हंसा मेहता*

(समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद)


          *जन्म : 3 जुलाई, 1897*

              (सूरत, गुजरात)*

          *मृत्यु : 4 अप्रेल, 1995*               पिता- मनुभाई मेहता

पति : जीवराज मेहता

नागरिकता : भारतीय

प्रसिद्धि ; समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद

आंदोलन : सविनय अवज्ञा आन्दोलन

जेल यात्रा : 1930 और 1932 ई. में दो बार जेल गईं

पुरस्कार-उपाधि : पद्म भूषण (1959)

अन्य जानकारी : महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील हंसा मेहता ने जेनेवा के 'अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन' में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

               हंसा मेहता एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के रूप में भारत में काफ़ी प्रसिद्ध रही हैं। इनके पिता मनुभाई मेहता बड़ौदा और बीकानेर रियासतों के दीवान थे। हंसा मेहता का विवाह देश के प्रमुख चिकित्सकों में से एक तथा गाँधीजी के निकट सहयोगी जीवराज मेहता जी के साथ हुआ था। भारत के संविधान को मूल रूप देने वाली समिति में 15 महिलाएं भी शामिल थीं। इन्होंने संविधान के साथ भारतीय समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हंसा मेहता इन्हीं में से एक थीं।

💁🏻‍♀️ *परिचय*

हंसा मेहता का जन्म 3 जुलाई, 1897 ई. को हुआ था। बड़ौदा राज्य में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक, जो बाद में बड़ौदा राज्य के दीवान भी रहे, सर मनुभाई मेहता के घर हंसा मेहता का जन्म हुआ। 'करन घेलो' जिसे गुजराती साहित्य का पहला उपन्यास माना जाता है, के उपन्यासकार नंद शंकर मेहता, हंसा मेहता के दादा थे। घर में पढ़ने-लिखने का महौल था तो हंसाबेन (हंसा मेहता) ने बड़ौदा के विद्यालय और महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र से बी.ए. ऑर्नस किया। एक संरक्षित माहौल में शिक्षा ग्रहण करने में हंसाबेन को अधिक मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा।

📚  *शिक्षा*

हंसाबेन जब पत्रकारिता की पढ़ाई करने इंग्लैड पहुंची, तब वहां उनकी मुलाकात सरोजिनी नायडू से हुई। सरोजिनी नायडू के साथ हंसाबेन महिला आंदोलन के बारे में दीक्षित तो हुई ही, सार्वजनिक सभाओं में भी शिरकत करना शुरू किया। सरोजनी नायडू के साथ वह एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में जेनेवा भी गईं। पत्रकारिता की पढ़ाई खत्म करके हंसाबेन अमेरिका की यात्रा पर गईं, जहां वह शिक्षण संस्थाए, शैक्षणिक एवं सामाजिक कार्य सम्मेलनों में शामिल हुईं, मताधिकार करने वाली महिलाओं से मिलीं। हंसाबेन सैन फ्रांसिस्को, शंघाई, सिंगापुर और कोलंबो होती हुईं भारत आईं। अपनी यात्रा के अनुभवों को 'बॉम्बे क्रॉनिकल' में प्रकाशित किया।

👩‍❤️‍👨 *अंतरजातीय विवाह*

उस दौर में प्रतिलोम विवाह दूसरे शब्दों में अपने से निचली जाति में विवाह समाज को स्वीकार्य नहीं था। यह सामाजिक संरचना के विरुद्ध जाकर बहुत बड़ा कदम था।

           हंसा मेहता ने डॉ. जीवराज एन. मेहता से विवाह करना तय किया तो नागर गृहस्थ समाज में शोर मच गया। ऊंची जाति का वैश्य के संग विवाह के प्रतिरोध के लिए गुजरात से बनारस तक में सभाएं की गईं और उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। इन सब चीज़ों से हंसाबेन विचलित नहीं हुईं और कहा- "जब जाति से बहिष्कृत हो ही चुकी हूं तो विवाह स्थगित करने का कोई तुक नहीं है"।


हंसा मेहता के पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों के अनुमोदन से 3 जुलाई, 1924 को वह हंसाबेन से हंसा मेहता हो गईं। विवाह के पश्चात हंसा मेहता बंबई (वर्तमान मुंबई) आ गईं, जहां पति ने किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल और जीएस मेडिकल कॉलेज में डीन का पद संभाला। बंबई हंसा मेहता की क्षमताओं के विकास के लिए अनुकूल शहर था। यहां हंसा मेहता ने शैक्षणिक और सामाजिक कल्याण की गतिविधियों में वक्त देना शुरू किया। वह गुजरात महिला सहकारी समिति, बंबई नगरपालिका विद्यालय समिति, राष्ट्रीय महिला परिषद, अखिल भारतीय महिला सम्मेलन आदि संस्थाओं से जुड़ी रहीं।


✍️📕  *रचनाएं*

हंसा मेहता ने गुजराती भाषा में बच्चों के लिए बाल साहित्य अनुवाद करना उस दौर में शुरू किया, जब बच्चों के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं था। उस समय केवल गिजूभाई मधोका बाल साहित्य के लिए गंभीरता से कार्य कर रहे थे। हंसाबेन ने 'बालवार्तावली' तैयार की, जो बाल कहानियों का संग्रह था। इसके बाद उन्होंने 'किशोरवार्तावली', 'बावलाना पराक्रम', 'पिननोशियों का अनुवाद', 'गुलिवस ट्रैवल्स' का अनुवाद किया। विभिन्न देशों की यात्रा का वर्णन उन्होंने 'अरुण नू अद्भुत स्वप्न', 'एडवेंचर्स ऑफ विक्रम', 'प्रिंस ऑफ अयोध्या' भी प्रकाशित किया।


हंसाबेन ने शेक्सपियर के नाटकों का गुजराती अनुवाद, वाल्मीकि रामायण का संस्कृत से गुजराती अनुवाद किया। इसके साथ ही फ्रेंच भाषा की कुछ रचनाओं का भी गुजराती अनुवाद प्रकाशित किया। अंग्रेज़ी में तीन पुस्तिकाएं प्रकाशित की- 'वीमेन अंडर द हिंदू लॉ ऑफ मैरिज एंड सक्सेशन', 'सिविल लिर्बिटी' और 'इंडियन वुमेन'। बच्चों के लिए बाल साहित्य तैयार करना और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय होते हुए कई समितियों से जुड़ा होना हंसा मेहता के व्यक्तित्व का एक छोटा सा परिचय है। 1930 में जब हंसाबेन गाँधी जी के साथ जुड़कर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ीं तो उनके व्यक्तित्व का बहुआयामी पक्ष उभरकर सामने आया। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी में 1932 और 1940 में उनको जेल भी जाना पड़ा।

💁🏻‍♀️ *संविधान सभा सदस्य*

स्वतंत्रता के बाद हंसा मेहता उन 15 महिलाओं में शामिल थीं, जो भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली घटक विधानसभा (Constituent Assembly) का हिस्सा थीं। वे सलाहकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप समिति की सदस्य थीं। उन्होंने भारत में महिलाओं के लिए समानता और न्याय की वकालत की।

🎖️ *पद्म भूषण*

हंसाबेन ने महिलाओं के स्तर में सुधार के अपने उद्देश्य को अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भी रखने की कोशिश की। संयुक्त राष्ट्र संघ के 'महिलाओं के स्तर' से संबंधित आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 'मानव अधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र' का प्रारूप तैयार करने वाले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वह दर्जनों अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों में शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करती रहीं। उनके इन योगदानों के लिए उन्हें सन 1959 में 'पद्म भूषण' से विभूषित किया गया।

🪔 *मृत्यु*

कठिन परिस्थितियों में आशावादी रहने वाला लंबा जीवन जीते हुए 4 अप्रॅल, 1995 को अपने पीछे एक बड़े संघर्ष की पंरपरा छोड़कर चली गईं। महिलाओं के स्तर में सुधार के लिए उनके प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र संघ ने सराहा और एक कालजयी विदुषी महिला के रूप उनके योगदानों को याद करता है।


        

श्यामाप्रसाद मुखर्जी आधारित टेस्ट

श्यामाप्रसाद मुखर्जी - २० प्रश्नांची चाचणी

श्यामाप्रसाद मुखर्जी - २० प्रश्नांची चाचणी

संत कान्होपात्रा आधारित टेस्टसंत कान्होपात्रा आधारित टेस्ट

संत कान्होपात्रा – टेस्ट

📘 संत कान्होपात्रा – टेस्ट (20 प्रश्न)

संत जनाबाई आधारित टेस्ट

संत जनाबाई – टेस्ट

🌺 संत जनाबाई – टेस्ट (20 प्रश्न)

संत नामदेव आधारित टेस्ट

संत नामदेव – टेस्ट

📘 संत नामदेव – टेस्ट (20 प्रश्न)

संत गोरा कुंभार आधारित टेस्ट

संत गोरा कुंभार – टेस्ट

📘 संत गोरा कुंभार – टेस्ट (20 प्रश्न)

संत मुक्ताबाई आधारित टेस्ट

संत मुक्ता बाई – टेस्ट

📘 संत मुक्ता बाई – टेस्ट (20 प्रश्न)

संत मुक्ताबाई आधारित टेस्ट..

संत मुक्ता बाई – टेस्ट

📘 संत मुक्ता बाई – टेस्ट (20 प्रश्न)

दादाभाई नौरोजी आधारित टेस्ट

दादाभाई नावरोजी टेस्ट

दादाभाई नावरोजी टेस्ट (20 प्रश्न)